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भगवान विष्णु का वो अवतार जिनके बारे में शायद ही जानते हों आप, क्यों जरूरी है हर हिंदू के लिए उनके ये राज

Rishabhdev Lord Vishnu Avataar: मान्यता है कि ऋषभदेव को जीवन के आखिरी समय में एक साल तक भूखा रहना पड़ा था. इसके बाद वे अपने पोते श्रेयांश के राज्य हस्तिनापुर पहुंचे थे, जहां श्रेयांस ने उन्हें गन्ने का जूस पिलाया था. इस दिन को हम 'अक्षय तृतीया' के नाम से जानते हैं. हस्तिनापुर में आज भी जैन समुदाय के लोग अक्षय तृतीया के दिन गन्ने का रस पीकर व्रत तोड़ते हैं.

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Edited By: India Daily Live
Rishabhdev Lord Vishnu Avataar
Courtesy: Social Media

Rishabhdev Lord Vishnu Avataar: भगवत पुराण के मुताबिक भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार ऋषभदेव को माना गया है.  ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में चैत्र कृष्ण नवमी को माना जाता है. इनका निर्वाण माघ कृष्ण चतुर्दशी को कैलाशपर्वत पर माना जाता है. भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक ऋषभदेव के बारे में आचार्य जिनसेन के आदिपुराण में विस्तार से वर्णन मिलता है.

ऋषभदेव, आग्नीघ्र राजा नाभि के बेटे थे. उनकी मां का नाम मरुदेवी था. हिंदू और जैन परम्पराएं ऋषभदेव को इक्ष्वाकुवंशी और कोसलराज की मानती हैं. जैन तीर्थंकर उन्हें यानी ऋषभदेव को अपना प्रवर्तक और प्रथम तीर्थंकर मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं. हिंदू शास्त्र के मुताबिक, भागवत में जिक्र है कि भगवान विष्णु ने मरुदेवी के गर्भ से धर्म का उपदेश देने के लिए ऋषभदेव के रूप में जन्म लिया था.

छह कर्मों के जरिए समाज को दिखाया विकास का मार्ग

कहा जाता है कि भारतीय संस्कृति में छह कर्मों की बात कही गई है, जिसे भगवान ऋषभदेव ने हमें दिया है. इन छह कर्मों के जरिए ही ऋषभदेव ने समाज को विकास का रास्ता भी दिखाया. इन छह कर्मों में असि (सैन्य शक्ति), मसि (परिश्रम), कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प शामिल हैं. इसके अलावा, ऋषभदेव ने समाज की आंतरिक चेतना को भी जगाया और अहिंसा, संयम के साथ-साथ तप भी सिखाया. ऋग्वेद में इनका जिक्र भी मिलता है. 

ऋषभदेव के रहस्य, जिसे हर हिंदू को जानना जरूरी है

पुराणों में भगवान विष्णु के 24 अवतारों का उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि भगवान विष्णु का 8वां अवतार ऋषभदेव के रूप में हुआ था. 

भगवान ऋषभदेव और भगवान शंकर में काफी समानताएं हैं. इनमें से एक ये भी कि दोनों को कैलाशवासी कहा जाता है. दोनों भगवान का संबंध नंदी से मिलता है. 

अयोध्या के राजा नाभिराज के पुत्र ऋषभदेव अपने पिता की मृत्यु के बाद राजा बने थे. कच्छ और महाकच्‍छ की 2 बहनों यशस्वती और सुनंदा से ऋषभदेव की शादी हुई थी.

ऋषभदेव की पत्नी नंदा ने भरत को जन्म दिया था, जो चक्रवर्ती सम्राट माने जाते हैं, जिनके नाम पर ही देश का नाम भारत पड़ा. वहीं, सुनंदा ने बाहुबली को जन्म दिया था. 

ऋषभदेव को 100 पुत्रों के साथ-साथ ब्राह्मी और सुंदरी नाम की 2 बेटियों का पिता माना जाता है. 

माना जाता है कि भगवान ऋषभदेव के कुल में ही इक्ष्वाकु हुए, जिनके कुल में भगवान राम भी पैदा हुए. 

कहा जाता है कि एक दिन सभा में नीलांजना नाम की नर्तकी की अचानक मौत हो गई, जिसके बाद ऋषभदेव का संसार से मोह टूट गया. इसके बाद वे राजपाट त्यागकर जंगल में चले गए.

ऋग्वेद में ऋषभदेव की चर्चा होती है. इसमें उन्हें वृषभनाथ और कहीं-कहीं वातरशना मुनि के नाम से पुकारा गया है. शिव महापुराण में उन्हें शिव के 28 योगावतारों में माना जाता है.

माना जाता है कि ऋषभदेव ने अपने जीवन में कुल 4000 लोगों को दीक्षा दी. भिक्षा मांगने  की प्रथा की शुरुआत भी भगवान ऋषभदेव से ही हुई थी.