Ramadan 2025: 2 मार्च से रमजान का महीना शुरू हो गया है. मुस्लिम समुदाय के लोग इस महीने को पवित्र मानते हैं और भूखे-प्यासे रहकर अल्लाह की इबादत करते हैं. इस महीने में ही कुरान को धरती पर लाया गया था. रमजान में रोजा रखने के साथ-साथ पांचों वक्त की नमाज और तरावीह का बहुत महत्व है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, खुदा ने इस महीने में रोजा रखने का आदेश दिया था.
देहरादून के मौलाना मोहम्मद अहमद कासमी का बयान: उन्होंने बताया कि कुरान में रोजे को जरूरी बताते हुए इसकी अहमियत बताई गई है. यह सब्र और परहेजगारी का महीना है, जिसमें बुरे कामों से दूर रहकर अच्छे काम करने होते हैं, जैसे कि दान देना.
उन्होंने यह भी कहा कि रमजान के महीने में कुरान उतारा गया था. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, रमजान के आखिरी हिस्से में कुरान को उतारा गया था, जो 21, 23, 25, 27 या 29 में से कोई एक रात हो सकती है. इसे लैलतुल कद्र कहते हैं. इस रात में जागकर इबादत करने से गुनाह माफ होते हैं. रोजा रखने वाला सूर्योदय से करीब डेढ़ घंटे पहले सेहरी करता है और सूर्योदय के बाद इफ्तार करता है. रोजे के दौरान वह नमाज और कुरान भी पढ़ता है.
रमजान में 30 दिनों तक तरावीह पढ़ी जाती है, क्योंकि कुरान में 30 हिस्से होते हैं. हर दिन एक हिस्सा पढ़ा जाता है. कुरान में रोजे का जिक्र है, लेकिन कुरान से पहले भी लोग रोजा रखते थे. इस्लामिक हदीस के अनुसार, अल्लाह ने रोजे को पांच फर्ज में शामिल करके पूरे महीने रोजे रखने का आदेश दिया था. बताया जाता है कि दुनिया का सबसे पहला रोजा हजरत आदम ने तब रखा था, जब उन्होंने शैतान के बहकावे में आकर उस पेड़ का फल खा लिया था, जिसे अल्लाह ने मना किया था. इसके चलते उन्हें जन्नत से निकालकर धरती पर भेजा गया था. यहां उन्होंने कई सालों तक खुदा से माफी मांगी, जिसके बाद अल्लाह ने उन्हें माफ कर दिया और रोजा रखने को कहा.
मौलाना बताते हैं कि मुसलमानों के लिए इस्लाम में पांच फर्ज बताए गए हैं, जिनमें कलमा, नमाज, जकात, रोजा और हज शामिल हैं. पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब भी इन कामों को नियमित रूप से करते थे और उनके अनुयायी भी इन्हें मानते हैं.