महाभारत का एक प्रमुख पात्र, शकुनि मामा, आमतौर पर कौरवों के कुटिल रणनीतिकार और पांडवों के शत्रु के रूप में जाना जाता है. लेकिन कई कथाओं और व्याख्याओं में ऐसा कहा जाता है कि शकुनि का असली उद्देश्य कौरवों को खत्न करना था. मामा शकुनी ने ऐसी आग लगाई की इसमें वो खुद भी जलकर.
शकुनि गांधार के राजा और दुर्योधन की मां गांधारी के भाई थे. वह बुद्धिमान, कुशल राजनीतिज्ञ और चालाकी के लिए प्रसिद्ध थे. जब गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से हुआ, तो शकुनि को अपनी बहन के साथ हुए अन्याय का गहरा आघात लगा.
धृतराष्ट्र अंधे थे, लेकिन उन्हें गांधारी के विवाह के योग्य बताया गया. इस अपमान और गांधार राज्य के प्रति किए गए व्यवहार ने शकुनि के मन में कौरवों के प्रति घृणा पैदा की.
शकुनि ने पांडवों को उनके अधिकार दिलाने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से कौरवों को कमजोर करने की योजना बनाई. उन्होंने दुर्योधन और धृतराष्ट्र की कमजोरियों का लाभ उठाया और पांडवों को ऐसी परिस्थितियों में डालने का प्रयास किया जहां वे अपनी शक्ति और नैतिकता को सिद्ध कर सकें.
शकुनि ने जुए में दुर्योधन का समर्थन किया, जिससे पांडवों को वनवास और कष्ट झेलने पड़े. हालांकि, यह कष्ट पांडवों को और अधिक सशक्त और संगठित बना गया. महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत और अधर्म पर धर्म की विजय, शकुनि की चालों के बिना संभव नहीं होती.
कुछ विद्वानों का मानना है कि शकुनि ने जानबूझकर दुर्योधन को इतना आत्मविश्वास दिलाया कि वह अधर्म के मार्ग पर चल पड़ा, जिससे अंततः कुरु वंश का विनाश सुनिश्चित हुआ.
शकुनि का चरित्र बहुआयामी है. वह न केवल अपने परिवार के प्रति निष्ठावान था, बल्कि धर्म और न्याय की स्थापना के लिए कौरवों के पतन को भी आवश्यक मानता था. उसकी योजनाएं और छल पांडवों के लिए चुनौती बनकर आए, लेकिन अंततः वही चुनौतियां उन्हें धर्म और शक्ति के मार्ग पर अग्रसर कर गईं.
इसलिए, शकुनि को केवल खलनायक के रूप में देखना शायद उचित नहीं होगा. वह एक ऐसा पात्र था, जिसने अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए अपनी भूमिका निभाई.