menu-icon
India Daily

Maha Kumbh Mela: कुंभ के बाद कहां गायब हो जाते हैं नागा साधु, नहीं जानते होंगे ये राज! सच जान उड़ जाएगी रातों की नींद

नागा साधु का जीवन अत्यंत कठिन और तपस्वी होता है. उनका उद्देश्य जीवन में केवल तपस्या, साधना और धर्म की रक्षा है. महाकुंभ और अन्य धार्मिक आयोजनों में उनकी उपस्थिति श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष आस्था का प्रतीक होती है.

auth-image
Edited By: Babli Rautela
Maha Kumbh Mela
Courtesy: Social Media

Maha Kumbh Mela: महाकुंभ मेला में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सबसे बड़ा आकर्षण नागा साधु होते हैं. दुनियाभर से लोग इन साधुओं के दर्शन करने और आशीर्वाद लेने के लिए इकट्ठा होते हैं. उनके रहन-सहन, साधना और जीवनशैली को लेकर लोगों के मन में कई सवाल होते हैं. क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ और कुंभ मेले के बाद ये साधु कहां जाते हैं और उनका जीवन कैसा होता है? आइए, जानते हैं इस रहस्यमयी समुदाय के बारे में कुछ दिलचस्प बातें.

नागा साधु बनने के लिए 12 साल का कठिन समय लगता है. इसके लिए सबसे पहले साधु बनने की प्रक्रिया शुरू होती है. इसमें छह साल तो केवल दीक्षा लेने और आवश्यक जानकारी प्राप्त करने में ही लग जाते हैं. इस दौरान नए सदस्य सिर्फ लंगोट पहनते हैं और कुंभ मेले के अंतिम प्रण के बाद लंगोट भी त्याग देते हैं. इसके बाद जीवनभर वे इसी अवस्था में रहते हैं. नागा साधु का जीवन बेहद तपस्वी और कठिन होता है. वे सुबह चार बजे उठकर नित्य क्रिया और स्नान करते हैं, फिर शृंगार करते हैं. इसके बाद हवन, ध्यान, प्राणायाम, कपाल क्रिया और नौली क्रिया करते हैं. दिन में एक बार भोजन करते हैं और फिर साधना में लीन हो जाते हैं.

नागा साधुओं को मिलती हैं चार उपाधियां

नागा साधुओं को चार प्रमुख कुंभों में अलग-अलग उपाधियां दी जाती हैं. प्रयागराज में इन्हें 'नागा', उज्जैन में 'खूनी नागा', हरिद्वार में 'बर्फानी नागा' और नासिक में 'खिचड़िया नागा' कहा जाता है. इन उपाधियों से साधु के कुंभ में आने का पता चलता है. नागा साधुओं के शृंगार में 16 नहीं, 17 वस्तुएं होती हैं. नागा साधु 16 नहीं, बल्कि 17 शृंगार करते हैं, जिनमें लंगोट, भभूत, चंदन, लोहे या चांदी के कड़े, अंगूठी, पंचकेश, माला, तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, और रुद्राक्ष की माला शामिल हैं.

महाकुंभ के बाद कहां जाते हैं नागा साधु?

महाकुंभ के बाद, नागा साधु वाराणसी में गंगा स्नान करने जाते हैं और फिर अपने अखाड़े के आश्रम में लौट आते हैं. कुछ साधु तपस्या के लिए हिमालय की गुफाओं में भी जाते हैं. अखाड़े के आदेश पर वे पैदल भ्रमण करते हुए गांवों में झोपड़ी बनाकर धुनी रमाते हैं. उनका जीवन गुरु की सेवा और आदेशों का पालन करने में ही समर्पित होता है.

नागा साधु की दिनचर्या में सुबह 4 बजे उठकर गुरु की सेवा और साधना शुरू होती है. वे एक बार भोजन करते हैं और फिर देर रात तक तप और साधना में व्यस्त रहते हैं. बमुश्किल 3-4 घंटे सोते हैं, क्योंकि उनका उद्देश्य केवल तपस्या और धर्म की रक्षा होता है.

आम लोगों के बीच क्यों नहीं रहते हैं नागा साधु ?

नागा साधु अपने साधना जीवन को कठिन तपस्या मानते हैं. अगर वे आम लोगों के बीच रहेंगे, तो वे भी उन्हीं के जैसे हो जाएंगे और तपस्या में विघ्न आ सकता है. इसलिए वे ज्यादातर जंगलों या पहाड़ों पर रहते हैं, जहां वे अपनी साधना कर सकें.

नागा साधु अपने जीवन का उद्देश्य हिंदू धर्म की रक्षा और मानव कल्याण मानते हैं. अगर कोई नागा अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करता है, तो वह नष्ट हो जाती हैं. अगर कोई व्यक्ति अपनी समस्या लेकर उनके पास आता है, तो वे अपनी शक्तियों से उसका समाधान करने की कोशिश करते हैं.