वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में 9 ग्रहों की स्थिति के चलते बनने वाले योग को नक्षत्र कहते हैं और उस नक्षत्र में ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही उसे नाम दिया जाता है. 26 जून 2023 से केतु का प्रवेश चित्रा नक्षत्र में हो रहा है, ऐसे में आइये एक नजर इस के चलते होने वाले 4 पदों पर डालते हैं और इसके चलते 12वें भाव के नक्षत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है.
केतु की बात करें तो वो 18 महीने तक एक ही राशि में विराजमान रहते हैं और 18 से 19 साल के अंदर एक चक्र पूरा करते हैं. ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्र होते हैं जिसे 4 पदों में बांटा गया है और सभी को 12 राशियों में बांटा गया है. हर नक्षत्र का विस्तार 13.20 अंश तक होता है और एक पद की लंबाई 3.20 अंश होती है.
चित्रा नक्षत्र के पद
चित्रा नक्षत्र का पहला पद: चित्रा नक्षत्र का पहला पद सूर्य द्वारा शासित होते हैं और सिंह राशि के नवमांश में पड़ता है. इस चरण में जन्म लेने वाले लोग अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने पर ध्यान केंद्रित करते हैं और उसी अनुसार अपनी चीज़ों को वास्तविक जीवन में लाने की कोशिश करते हैं.
चित्रा नक्षत्र का दूसरा पद: चित्रा नक्षत्र का दूसरा चरण कन्या नवमांश में पड़ता है और बुध द्वारा शासित होते हैं. इस चरण में जन्म लेने वाले लोग अपना पूरा ध्यान आत्म-अनुशासन सीखने और सामूहिक गतिविधियों में भाग लेने पर लगाते हैं.
चित्रा नक्षत्र का तीसरा पद: चित्रा नक्षत्र का तीसरा चरण तुला नवमांश में पड़ता है और शुक्र द्वारा शासित होते हैं. इस चरण में जन्म लेने वाले लोग अपना ध्यान संगीत और विदेशी भाषा सीखने में लगाते हैं.
चित्रा नक्षत्र का चौथा पद: इस नक्षत्र का चौथा चरण वृश्चिक नवमांश में आता है और मंगल द्वारा शासित होते हैं. इस चरण में जन्म लेने वाले लोग ऊर्जा से भरे रहते हैं और अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल सभी प्रकार की महत्वाकांक्षाओं और लक्ष्यों को पूरा करने के लिए करते हैं.
ज्योतिष में मंगल का महत्व
मंगल पुरुष प्रधान ग्रह है और वैदिक ज्योतिष में मंगल ऊर्जा, गति, भूमि, शक्ति, साहस, पराक्रम, शौर्य को दर्शाते हैं. इसके अलावा मंगल को गुस्सा, जिद्दी स्वभाव, आक्रामकता, उठापटक आदि का कारक ग्रह माना गया है. इन्हें मेष और वृश्चिक राशि का स्वामित्व प्राप्त है. यह मकर राशि में उच्च के होते हैं, जबकि कर्क इनकी नीच राशि है. वहीं नक्षत्रों की बात करें तो 27 नक्षत्रों में यह मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा नक्षत्र के स्वामी होते हैं. चंद्रमा, सूर्य और बृहस्पति मंगल के मित्र ग्रह हैं. वहीं, शनि और बुध से इनकी शत्रुता है जबकि शुक्र को तटस्थ ग्रह माना गया है.
ज्योतिष में केतु ग्रह का महत्व
ज्योतिष में केतु अध्यात्म, वैराग्य, मोक्ष, तांत्रिक आदि के कारक होते हैं. केतु एक ऐसा ग्रह है जो भौतिक दुनिया से अलग हो जाता है और आध्यात्मिकता के मार्ग की ओर ले जाता है. ज्योतिष में राहु को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है. लेकिन धनु केतु की उच्च राशि है, जबकि मिथुन में यह नीच भाव में होते हैं.
वहीं 27 रुद्राक्षों में केतु अश्विनी, मघा और मूल नक्षत्र के स्वामी होते हैं और साथ ही यह एक छाया ग्रह भी है. यदि कुंडली में केतु सकारात्मक या नकारात्मक भाव में विराजमान हैं तो यह उस भाव के स्वामी की स्थिति के आधार पर अच्छे व बुरे परिणाम प्रदान करते हैं. भगवान गणेश केतु के अधिष्ठाता देवता हैं. केतु ग्रह के शुभ प्रभाव प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन भगवान गणेश की पूजा अवश्य करनी चाहिए.
चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों का व्यक्तित्व
ये जातक प्रकृति प्रेमी होते हैं.
चित्रा नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक अपनी स्वतंत्रता का खुलकर आनंद लेते हैं और साथ ही, पारिवारिक मूल्यों को भी समझते हैं और कोई भी सीमा पार नहीं करते हैं.
इस नक्षत्र के जातक स्वतंत्र विचारों के होते हैं और अपने दिमाग से काम लेते हैं.
चित्रा नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग अत्यधिक रचनात्मक और कलात्मक होते हैं.
ये जातक हमेशा जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं.
ये दृढ़ निश्चयी एवं साहसी होते हैं क्योंकि मंगल इनके स्वामी हैं.
जातक अपने प्रियजनों के प्रति बहुत सुरक्षात्मक होते हैं और उनका पूरा ख्याल रखते हैं.
शुरुआत में भले ही इन्हें सफलता प्राप्त करने में देरी का अनुभव हो सकता है लेकिन 32 वर्ष की आयु के बाद अपार सफलता प्राप्त करने में सक्षम होते हैं.
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जीवन में 9 ग्रहों की स्थिति के चलते बनने वाले योग को नक्षत्र कहते हैं और उस नक्षत्र में ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही उसे नाम दिया जाता है. 26 जून 2023 से केतु का प्रवेश चित्रा नक्षत्र में हो रहा है, ऐसे में आइये एक नजर इस के चलते होने वाले 4 पदों पर डालते हैं और इसके चलते 12वें भाव के नक्षत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है.
केतु की बात करें तो वो 18 महीने तक एक ही राशि में विराजमान रहते हैं और 18 से 19 साल के अंदर एक चक्र पूरा करते हैं. ज्योतिष में कुल 27 नक्षत्र होते हैं जिसे 4 पदों में बांटा गया है और सभी को 12 राशियों में बांटा गया है. हर नक्षत्र का विस्तार 13.20 अंश तक होता है और एक पद की लंबाई 3.20 अंश होती है.