Eid Ul Adha: क्यों मनाई जाती है बकरीद, इस्लाम में क्या है इसका महत्व?
Eid Ul Adha Importance: ईद उल अजहा या बकरीद को इस्लाम के सबसे पवित्र त्योहार में से एक माना जाता है. यह त्योहार अल्लाह के प्रति अपने इस्माइल की कुर्बानी की याद में मनाई जाती है. जानवार की कुर्बानी देते वक्त दो भाग में काटा जाता है. यह त्योहार दो संदेश देता है कि परिवार के बड़े सदस्य में स्वार्थ नहीं होना चाहिए और खुद को मानवता की सेवा में लगाना चाहिए.
Eid Ul Adha 2024: ईद उल अजहा मुस्लिम धर्म के लोगों का खास त्यौहार होता है. ईद उल अजहा को बकरीद के नाम से भी पहचाना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक ये जु अल-हज्जा महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है. ईद उल अजहा या बकरीद के दिन बकरी की कुर्बानी दी जाती है. सऊदी अरब में इस साल बकरीद 16 जून को मनाई जा रही है वहीं भारत में 17 जून यानी आज मनाई जा रही है.
इस्लाम के सबसे पवित्र त्यौहार में से एक बकरीद माना जाता है. इस्लाम के अनुसार साल भर में दो बार ईद मनाई जाती है जो ‘मीठी ईद’और बकरीद के नाम से जानी जाती है. एक तरफ जहां ईद सबको प्रेम करने को बताती है तो वहीं दूसरी तरफ बकरीद अपना कर्तव्य निभाने का और अल्लाह पर विश्वास रखने को दर्शाता है. ईद-उल-जुहा को कुर्बानी का दिन माना जाता है. इस वजह से इस दिन किसी बकरी या अन्य पशु की कुर्बानी दी जाती है.
बकरीद क्यों मनाई जाती है?
इस्लामिक स्कॉलर उमेर खान के अनुसार यह त्यौहार हजरत इब्राहिम के अल्लाह के प्रति अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी की याद में मनाई जाती है. दरअसल अल्लाह पर भरोसा दिखाने के लिए हजरत इब्राहिम को अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देनी थी. जैसे ही उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तलवार उठाई, तभी अल्लाह के हुक्म की वजह बेटे की जगह एक दुंबा आ गई. जिसकी वजह दुंबा कुर्बान हो गई. बता दें, दुंबा एक भेड़ जैसी ही एक प्रजाति है.
जानवर की कुर्बानी
इसी वजह से आज जानवर की कुर्बानी देते हुए उसे तीन हिस्सों में काटा जाता है. जिसमें से एक हिस्सा गरीबों को दान किया जाता, दूसरा भाग दोस्तों और रिश्तेदारों को बांटा जाता है. आखिरी तीसरा हिस्सा पूरा परिवार खाता है.
क्या है कुर्बानी का महत्व?
इस्लामिक स्कॉलर उमेर खान के अनुसार असल में जो इब्राहीम से कुर्बानी मांगी थी वो खुद की थी. इसका मतलब था कि वह सूख-आराम को भूलकर मानवता की सेवा करने में जूट जाएं. इस वजह उन्होंने बेटे इस्माइल और उनकी मां हाजरा को मक्का बेजने का फैसला लिया और वह खुद मानव सेवा में व्यस्त हो गए. ईद उल अजहा दो संदेश देता है एक परिवार के बड़े सदस्य में स्वार्थ नहीं होना चाहिए और खुद को मानवता की सेवा में लगाना चाहिए.
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