SC-ST समुदाय के 4 संत बने महामंडलेश्वर, 1300 साल बाद बदली परंपरा
संत समाज के इतिहास पहली बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के संतों को महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई है. ऐसा होने से 1300 साल से चली आ रही परंपरा का भी अंत हुआ है.
गुजरात के अहमदाबाद द्वारा आयोजित समारोह में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा साधु-संतों की मौजूदगी में गुजरात के 4 संतों को महामंडलेश्वर के रूप में पट्टाभिषेक हुआ. नेशनल इंटेलेक्चुअल एडवाइजरी के मुख्य रणनीतिकार राजेश शुक्ला के मुताबिक ऐसा 1300 साल में पहली बार हुआ है. उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में समानता के सिद्धांत को बढ़ावा देने के लिए ऐसा फैसला लिया गया है.
बीते मंगलवार को इन चारों संतों का जल, दूध, पंचामृत और शहद से अभिषेक किया गया. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के द्वारा संत समाज में यह नई पहल हिंदू धर्म में समानता और जाति व्यवस्था को तोड़ने के लिए की गई है.
क्या है यह उपाधि?
महामंडलेश्वर का अर्थ 'महान या असंख्य मठों का श्रेष्ठ'है. यह पद संन्यासियों के लिए एक विशिष्ट अखाड़े या संप्रदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया गया था. यह पद हिंदू धर्म में शंकराचार्यों के बाद दूसरे स्थान पर है. शनल इंटेलेक्चुअल एडवाइजरी के मुख्य रणनीतिकार राजेश शुक्ला ने बताया कि समय-समय पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि इन पदों पर तथाकथित ऊंची जातियों का कब्जा रहा है. इस प्रकार की रूढ़ियों को तोड़ने के लिए ऐसा फैसला किया गया है.
इस आयोजन के लिए 6 महीने से प्लानिंग कर रहे थे. उन्होंने बताया कि इस आयोजन से समानता का संदेश पूरी दुनिया में जाएगा. उन्होंने कहा कि यह पहली बार हुआ है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस प्रकार का कोई आयोजन किया है.
इन संतों को बनाया गया महामंडलेश्वर
महामंडलेश्वर के पद पर आसीन होने वालों में संत शनलदास मंगलदास गोंडल राजकोट, संत शामलदास प्रेमदास कबीर मंदिर भावनगर, संत किरणदास वाल्मीकि अखाड़ा भावनगर, कृष्णवदन महाराज संत अकल साहेब समाधि स्थान सुरेंदनगर रहे. इस कार्यक्रम में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी महाराज, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महासचिव महंत हरि गिरि महाराज, स्वामीनारायण के महंत पुरुषोत्तमदास महाराज मौजूद रहे.